वक़त के सांचे में ढल जाओ या वक़त के सांचे बदल डालो । दो ही रस्ते हैं वक़त पर पकड़ के , तन कर चल तू सीधा अकड़ के संसृति को प्यार और विश्वास के बंधन में जकड के , मान के चल तू ये सृष्टि खुदा ने तेरे लिए ही सजा दी है , इसी में कायत तेरी और तेरे विचारों की आज़ादी है ।
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