{ मेरी जिंदगी की तरह }
बीच राह पर ...
ठोकरों में जमाने की
पडा है वो
' इक पत्थर का टुकड़ा ',
जाते हुए राही की
ठोकर से था
दूर जा गिरा ,
आते मुसाफिर की
ठोकर से फिर
वहीँ आ पड़ा ,
अकेला वीरान है
नहीं सुनने वाला
कोई दुखड़ा ,
लोगों के काम आता
फिर दुत्कारा जाता ,
बेकार जो पड़ा है
ये पत्थर का टुकड़ा ,
चौंक उठता है
राहिओं की
ठोकरों से रह -रह ,
शायद इसकी भी
बस यही जिंदगी है
मेरी जिंदगी की तरह,
मेरी जिंदगी की तरह ..........
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